सूचना-प्रौद्योगिकी
परिचय (Introduction)
कम्प्यूटर का विकास कई दशकों पहले ही हो चुका है, परन्तु आधुनिक युग में कम्प्यूटर की क्षमता, गति, आकार एवं अन्य कई विशेषताओं में आश्चर्यजनक बदलाव हो रहे हैं। इन सभी सूचनाओं में सूचना प्रौद्योगिकी के आविष्कार ने कई असम्भव बातों को सम्भव बना दिया है। हम घर बैठे दूर स्थित अपने किसी मित्र व संबंधी के साथ चैंटिंग करना, रेलवे-वायुयान टिकट आरक्षित करा सकते हैं। कम्प्यूटर के विकास के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी भी विकास के पथ पर अग्रसर है। सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग डाटा संचार के रूप में, व्यपार, घर, बैंकों इत्यादि स्थानों पर मुख्य रूप से किया जाता है। दूसरे शब्दों में ज्ञान की नई शाखा को सूचना प्रौद्योगिकी कहते हैं।
सूचना-प्रौद्योगिकी के मौलिक घटक(Fundamental Ingredient of IT)
कम्प्यूटर का विकास कई दशकों पहले ही हो चुका है, परन्तु आधुनिक युग में कम्प्यूटर की क्षमता, गति, आकार एवं अन्य कई विशेषताओं में आश्चर्यजनक बदलाव हो रहे हैं। इन सभी सूचनाओं में सूचना प्रौद्योगिकी के आविष्कार ने कई असम्भव बातों को सम्भव बना दिया है। हम घर बैठे दूर स्थित अपने किसी मित्र व संबंधी के साथ चैंटिंग करना, रेलवे-वायुयान टिकट आरक्षित करा सकते हैं। कम्प्यूटर के विकास के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी भी विकास के पथ पर अग्रसर है। सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग डाटा संचार के रूप में, व्यपार, घर, बैंकों इत्यादि स्थानों पर मुख्य रूप से किया जाता है। दूसरे शब्दों में ज्ञान की नई शाखा को सूचना प्रौद्योगिकी कहते हैं।
सूचना-प्रौद्योगिकी के मौलिक घटक(Fundamental Ingredient of IT)
संचार प्रक्रिया, कम्प्यूटर नेटवर्क, ई-मेल आदि सूचना-प्रौद्योगिकी के मौलिक घटक हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
संचार-प्रक्रिया (Communication Process)
दो विभिन्न या समान डिवाइसों के मध्य डाटा तथा सूचनाओं के आदान प्रदान को डाटा संचार एवं इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को संचार-प्रक्रिया कहते हैं। संचार-प्रक्रिया निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा सम्पन्न होती है-
1. संदेश
2. प्राप्तकर्ता
3. प्रेषक
4. माध्यम
5. प्रोटोकॉल
कम्प्यूटर नेटवर्क (Computer Network)
सूचनाओं या अन्य संसाधनों के परस्पर आदान-प्रदान एवं साझेदारी के लिए दो या दो अधिक कम्प्यूटरों का परस्पर जुड़ाव कम्प्यूटर नेटवर्क कहलाता है। कम्प्यूटर नेटवर्क के अंतर्गत संसाधनों एवं सूचनाएं एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक समान रूप से पहुंचती है। कम्प्यूटर नेटवर्क एक कंपनी अथवा भवनों, एक कमरे तथा शहर के मध्य स्थापित किए जाते हैं।
संचार-प्रक्रिया (Communication Process)
दो विभिन्न या समान डिवाइसों के मध्य डाटा तथा सूचनाओं के आदान प्रदान को डाटा संचार एवं इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को संचार-प्रक्रिया कहते हैं। संचार-प्रक्रिया निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा सम्पन्न होती है-
1. संदेश
2. प्राप्तकर्ता
3. प्रेषक
4. माध्यम
5. प्रोटोकॉल
कम्प्यूटर नेटवर्क (Computer Network)
सूचनाओं या अन्य संसाधनों के परस्पर आदान-प्रदान एवं साझेदारी के लिए दो या दो अधिक कम्प्यूटरों का परस्पर जुड़ाव कम्प्यूटर नेटवर्क कहलाता है। कम्प्यूटर नेटवर्क के अंतर्गत संसाधनों एवं सूचनाएं एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक समान रूप से पहुंचती है। कम्प्यूटर नेटवर्क एक कंपनी अथवा भवनों, एक कमरे तथा शहर के मध्य स्थापित किए जाते हैं।
नेटवर्क के प्रकार(Types of Network)
नेटवर्क विभिन्न प्रकार के होते हैं परन्तु मुख्यत: नेटवर्क तीन प्रकार के होते हैं-
1. लोकल एरिया नेटवर्क- लैन (Local Area Network- LAN)
वह नेटवर्क जो केवल एक भवन, कार्यालय अथवा एक कमरे तक सीमित होते हैं, लोकल एरिया नेटवर्क कहलाते हैं। इस नेटवर्क के अंतर्गत कई कम्प्यूटर आपस में संयोजित रहते हैं। परन्तु इनका भौगोलिक क्षेत्र एक या दो किमी. से अधिक नहीं होता है। रिंग, स्टार या कम्प्लीटली कनेक्टेड नेटवर्क आदि लैन के उदाहरण हैं।
वह नेटवर्क जो केवल एक भवन, कार्यालय अथवा एक कमरे तक सीमित होते हैं, लोकल एरिया नेटवर्क कहलाते हैं। इस नेटवर्क के अंतर्गत कई कम्प्यूटर आपस में संयोजित रहते हैं। परन्तु इनका भौगोलिक क्षेत्र एक या दो किमी. से अधिक नहीं होता है। रिंग, स्टार या कम्प्लीटली कनेक्टेड नेटवर्क आदि लैन के उदाहरण हैं।
2. मैट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क- मैन (Metropolitan Area Network- MAN)
एक या एक से अधिक लोकल एरिया नेटवर्कों को एक साथ जोड़कर बनाए गए नेटवर्क को मैट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क कहते हैं। यह नेटवर्क वृहद स्तरीय नेटवर्क है, जो कई कार्पोरेटों से मिलकर बना होता है। मैन की गति अत्यधिक तीव्र होती है, परन्तु लैन की अपेक्षा धीमी होती है।
3. वाइड एरिया नेटवर्क- वैन (Wide Area Network- WAN)
वह नेटवर्क जो मंडलीय, राष्टरीय, अंतरराष्टरीय एवं प्रादेशिक स्तर पर जोड़े जाते हैं, वाइड एरिया नेटवर्क कहलाते हैं। वैन में उपग्रह द्वारा कम्प्यूटर टर्मिनलों को आपस में जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए- मुबंई में रहकर दिल्ली से कोलकाता का आरक्षण करना या कनाडा से सिंगापुर की फ्लाइट का आरक्षण केवल वैन द्वारा ही संभव है। वैन की गति, लैन तथा मैन की अपेक्षा धीमी होती है।
कम्प्यूटर डाटा संरचना
कम्प्यूटर एक बहुत ही उपयोगी यन्त्र है । कम्प्यूटर यूजर द्वारा दिए हुए सभी प्रकार के निर्देशों को गणना के लिए संग्रहीत करता है जैसे - संख्या, नंबर, टेक्स्ट, ग्राफ़िक्स, चित्र इत्यादि। यह सभी डाटा तथा निर्देश अलग परन्तु कम्प्यूटर इन सभी डाटा तथा निर्देशों को बाइनरी भाषा में बदल कर संग्रहीत करता है । बाइनरी एक मशीन की भाषा है जिसका आधार सिर्फ दो संख्याएँ है - 0 तथा 1 । यूजर द्वारा दिए गए सभी निर्देश बाइनरी भाषा में 0 तथा 1 में परिवर्तित हो जाते है । इस प्रक्रिया को डाटा निरूपण कहते है । डाटा निरूपण के लिए दो तरीके होते है -
1. एनालॉग क्रियायें
2. डिजिटल क्रियायें
1. एनालॉग क्रियायें
2. डिजिटल क्रियायें
एनालॉग क्रियायें (Analog Operations)-
एनालॉग क्रियाएं लगातार परिवर्तनशील संकेत पर आधारित है । इनमे अंकों का प्रयोग नहीं होता है । एनालॉग क्रियाओं का प्रयोग विज्ञानं तथा इंजीनियरिंग के बहुत से क्षेत्रों में किया जाता है क्योंकि इन क्षेत्रों में भौतिक मात्राओं का उपयोग अधिक किया जाता है जैसे की स्पीडोमीटर, ओडोमीटर, वोल्टमीटर, थर्मामीटर इत्यादि
डिजिटल क्रियायें (Digital Operation)-
आधुनिक कम्प्यूटर डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक सर्किट (digital electronic circuits) द्वारा निर्मित होते हैं। इस सर्किट का मुख्य भाग ट्रांजिस्टर होता है जो दो अवस्थाओं 0 तथा 1 में कार्य करता है। कम्प्यूटर में डाटा को व्यक्त करने वाली इन दो अवस्थाओं को सम्मिलित रूप से बाइनरी संख्या प्रणाली कहते हैं।बाइनरी डाटा को स्टोर करने के लिए एक प्रणाली बनाई गई है, जिसकी सबसे छोटी इकाई बिट है ।
4 बिट्स = 1 निबल
8 बिट्स = 1 बाइट
1024 बाइट्स = 1 किलोबाइट (KB)
1024 किलोबाइट = 1 मेगाबाइट (MB)
1024 मेगाबाइट = 1 गीगाबाइट (GB)
1024 गीगाबाइट = 1 टेराबाइट (TB)
महत्वपूर्ण प्रोग्रामिंग भाषाएं
परिचय (Introduction)
कम्प्यूटर एक मशीन है और वह हमारी बोलचाल की भाषा को समझ नहीं सकता। इसके लिए प्रोग्राम, विशेष प्रकार की भाषा में लिखे जाते हैं। इन भाषाओं को प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के नाम से जानते हैं। आजकल ऐसी सैकड़ों भाषाएं प्रचलन में हैं। ये भाषाएं कम्प्यूटर और प्रोग्रामर के बीच संपर्क या फिर संवाद स्थापित करने का काम करती हैं। कम्प्यूटर उन्हीं के माध्यम से दिए गए निर्देशों को समझकर काम करता है। कम्प्यूटर द्वारा किए जाने वाले अलग अलग कार्यों के लिए अलग-अलग तरह की लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें कुछ प्रमुख प्रोग्रामिंग लैंग्वेज इस प्रकार हैं-
लो-लेवल लैंग्वेज (Low Level Languages)
वे लैंग्वेज जो कम्प्यूटर की आंतरिक कार्यप्रणाली को ध्यान में रखकर बनाई गई हंै लो लेवल लैंग्वेज कहलाती हैं। इसमें प्रोग्राम लिखने वाले व्यक्ति को कम्प्यूटर की आंतरिक क्रिया प्रणाली की जानकारी होना आवश्यक है। इसको निम्न स्तरीय लैंग्वेज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रोग्राम लिखना पूरी तरह से उस कम्प्यूटर पर निर्भर करता है जिस पर यह लिखा जा रहा है। इस लैंग्वेज को पुन: दो अन्य भाषाओं में बांटा जा सकता है।
कम्प्यूटर एक मशीन है और वह हमारी बोलचाल की भाषा को समझ नहीं सकता। इसके लिए प्रोग्राम, विशेष प्रकार की भाषा में लिखे जाते हैं। इन भाषाओं को प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के नाम से जानते हैं। आजकल ऐसी सैकड़ों भाषाएं प्रचलन में हैं। ये भाषाएं कम्प्यूटर और प्रोग्रामर के बीच संपर्क या फिर संवाद स्थापित करने का काम करती हैं। कम्प्यूटर उन्हीं के माध्यम से दिए गए निर्देशों को समझकर काम करता है। कम्प्यूटर द्वारा किए जाने वाले अलग अलग कार्यों के लिए अलग-अलग तरह की लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें कुछ प्रमुख प्रोग्रामिंग लैंग्वेज इस प्रकार हैं-
लो-लेवल लैंग्वेज (Low Level Languages)
वे लैंग्वेज जो कम्प्यूटर की आंतरिक कार्यप्रणाली को ध्यान में रखकर बनाई गई हंै लो लेवल लैंग्वेज कहलाती हैं। इसमें प्रोग्राम लिखने वाले व्यक्ति को कम्प्यूटर की आंतरिक क्रिया प्रणाली की जानकारी होना आवश्यक है। इसको निम्न स्तरीय लैंग्वेज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रोग्राम लिखना पूरी तरह से उस कम्प्यूटर पर निर्भर करता है जिस पर यह लिखा जा रहा है। इस लैंग्वेज को पुन: दो अन्य भाषाओं में बांटा जा सकता है।
1. मशीन लैंग्वेज (Machine Languages)
कम्यूटर एक मशीन है जो केवल विद्युत संकेतों को ही समझ सकती है। इन विद्युत संकेतों को ऑफ या 0(शून्य) व ऑन या 1(एक) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इन अंको के बायनरी अंक कहते हैं। कम्प्यूटर केवल इन बाइनरी अंकों में दिए गए निर्देशों को समझ सकता है। इन बाइनरी अंको से बनी लैंग्वेज को हम मशीन लैंग्वेज कहते हैं। जैसे- 0100100011100110011
कम्यूटर एक मशीन है जो केवल विद्युत संकेतों को ही समझ सकती है। इन विद्युत संकेतों को ऑफ या 0(शून्य) व ऑन या 1(एक) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इन अंको के बायनरी अंक कहते हैं। कम्प्यूटर केवल इन बाइनरी अंकों में दिए गए निर्देशों को समझ सकता है। इन बाइनरी अंको से बनी लैंग्वेज को हम मशीन लैंग्वेज कहते हैं। जैसे- 0100100011100110011
2. असेंबली लैंग्वेज (Assembly Languages) -
अंसेबली लैंग्वेज वे भाषाएं होती हैं जो पूरी तरह से मशीन लैंग्वेज पर आधारित होती हैं। लेकिन इनमें 0 व 1 की सीरीज के स्थान पर अंग्रेजी के कुछ अक्षरों व कुछ चुने हुए शब्दों का कोड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इन कोडों को नेमोनिक कोड या शाब्दिक कोड के नाम से जाना जाता है।
अंसेबली लैंग्वेज वे भाषाएं होती हैं जो पूरी तरह से मशीन लैंग्वेज पर आधारित होती हैं। लेकिन इनमें 0 व 1 की सीरीज के स्थान पर अंग्रेजी के कुछ अक्षरों व कुछ चुने हुए शब्दों का कोड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इन कोडों को नेमोनिक कोड या शाब्दिक कोड के नाम से जाना जाता है।
3. हाई लेवल लैंग्वेज (High Level Languages)
जैसा कि लो-लेवल लैंग्वेज के लिए बताया गया कि प्रोग्राम लिखने के लिए कम्प्यूटर की आंतरिक कार्यप्रणाली का ज्ञान होना जरूरी है। दूसरा प्रत्येक कम्प्यूटर की अपनी अलग मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा होती है। अत: एक तरह के कम्प्यूटर के लिए इन भाषाओं में लिखा गया प्रोग्राम दूसरी तरह के कम्प्यूटरों के लिए बेकार हो जाता है। अत: ऐसी प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास किया गया जो सिस्टम की आंतरिक कार्यप्रणाली पर आधारित न हो और जिनमें लिखे गए प्रोग्रामोंको किसी भी प्रकार के सिस्टम पर चलाना संभव हो। इन भाषाओं को हाई लेवल भाषा कहा जाता है। हाई लेवल प्रोग्रामिंग भाषा में इंग्लिश के चुने हुए शब्दों व साधारण गणित में प्रयोग किए जाने वाले चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। इन भाषाओं में प्रोग्राम लिखना उनमे गलतियों का पता लगाना और उनको सुधारना लो लेवल भाषा की तुलना में आसान होता है। सभी प्रोग्राम हाई लेवल भाषा मे ही लिखे जाते हैं।
जैसा कि लो-लेवल लैंग्वेज के लिए बताया गया कि प्रोग्राम लिखने के लिए कम्प्यूटर की आंतरिक कार्यप्रणाली का ज्ञान होना जरूरी है। दूसरा प्रत्येक कम्प्यूटर की अपनी अलग मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा होती है। अत: एक तरह के कम्प्यूटर के लिए इन भाषाओं में लिखा गया प्रोग्राम दूसरी तरह के कम्प्यूटरों के लिए बेकार हो जाता है। अत: ऐसी प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास किया गया जो सिस्टम की आंतरिक कार्यप्रणाली पर आधारित न हो और जिनमें लिखे गए प्रोग्रामोंको किसी भी प्रकार के सिस्टम पर चलाना संभव हो। इन भाषाओं को हाई लेवल भाषा कहा जाता है। हाई लेवल प्रोग्रामिंग भाषा में इंग्लिश के चुने हुए शब्दों व साधारण गणित में प्रयोग किए जाने वाले चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। इन भाषाओं में प्रोग्राम लिखना उनमे गलतियों का पता लगाना और उनको सुधारना लो लेवल भाषा की तुलना में आसान होता है। सभी प्रोग्राम हाई लेवल भाषा मे ही लिखे जाते हैं।
हाई लेवल प्रोग्रामिंग भाषाओं को भी उनकी प्रकृति के अनुसार दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
1. विधि अभिमुखी भाषाएं (Procedure Oriented Languages)
2. समस्या अभिमुखी भाषाएं (Problem Oriented Languages)
प्रमुख हाई लेवल लैंग्वेज:1. विधि अभिमुखी भाषाएं (Procedure Oriented Languages)
2. समस्या अभिमुखी भाषाएं (Problem Oriented Languages)
1. बेसिक
2. फोरट्रॉन
3. लोगो
4. कोबोल
5. पास्कल
6. सी
7. सी++
8. अल्गोल
9. कोमाल
10. पायलट
11.स्नोबॉल
12. प्रोलॉग
13. फोर्थ जेनरेशन लैग्वेज (4जीएल)
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